Tuesday, July 10, 2012

Ranjish hi sahi

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ ।

 रंजिश=enmity

पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ ।

मरासिम=agreements/relationships,
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया=customs and traditions of the society

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
... तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ ।

कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मुहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ ।

  पिन्दार=pride

एक उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिरिया से भी महरूम
ऐ राहत-ए-जाँ मुझ को रुलाने के लिए आ ।
 
लज़्ज़त-ए-गिरिया=taste of sadness/tears,
महरूम=devoid of, राहत-ए-जाँ=peace of life

अब तक दिल-ए-ख़ुश’फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
ये आख़िरी शम्में भी बुझाने के लिए आ ।

 दिल-ए-ख़ुश’फ़हम=optimistic heart, शम्में=candles

Piya Basanti Re

पिया बसंती रे
काहे सताए आजा
जाने क्या जादू किया
प्यार की धुन छेड़े जिया
काहे सताए आजा

बादल ने अंगड़ाई ली जो कभी, लहराया धरती का आँचल
ये पत्ता-पत्ता, ये बूटा-बूटा, छेड़े है कैसी ये हलचल
मनवा ये डोले, जाने क्या बोले
मानेगा ना मेरा जिया
...
तेरे है हम तेरे पिया
काहे सताए आजा

पलकों के सिरहाने बैठे, ख्वाब वही जो आने वाले
दिल की गिरहा-गिरहा खोले, मन में प्यार जगाने वाले
सतरंगी सपने बोले रे
काहे सताए आजा


 ---अखिलेश शर्मा

Tuesday, July 3, 2012

KYA JAANE KAB KHA SE CHURAI MERI GAJHAL

क्या जाने कब कहाँ से चुराई मेरी ग़ज़ल
उस शोख ने मुझी को सुनाई मेरी ग़ज़ल

पूछा जो मैंने उस से के है कौन खुश -नसीब
आँखों से मुस्कुरा के लगाई मेरी ग़ज़ल

एक -एक लफ्ज़ बन के उड़ा था धुंआ -धुंआ
उस ने जो गुनगुना के सुनाई मेरी ग़ज़ल

हर एक शख्स मेरी ग़ज़ल गुनगुनाएं हैं
... राही ’ तेरी जुबां पे ना आई मेरी ग़ज़ल

AB TUM AAGOSH A TASSVUR

अब तुम आगोश -ए -तसव्वुर में भी आया न करो
मुझ से बिखरे हुए गेसू नहीं देखे जाते
सुर्ख आँखों की क़सम कांपती पलकों की क़सम
थर -थराते हुए आंसू नहीं देखे जाते

[आगोश -ए -तसव्वुर =in the grasp/reach of dreams/imagination]

अब तुम आगोश -ए -तसव्वुर में भी आया न करो
छूट जाने दो जो दामन -ए -वफ़ा छूट गया
क्यूँ ये लगजीदा ख़रामी ये पशेमान नज़री
तुम ने तोड़ा नहीं रिश्ता -ए -दिल टूट गया

[लगजीदा ख़रामी =hesitant walk; पशेमान नज़री=penitent gaze]

अब तुम आगोश -ए -तसव्वुर में भी आया न करो
मेरी आहों से ये रुखसार न कुमला जाएँ
ढूँदती होगी तुम्हें रस में नहाई हुई रात
जाओ कलियाँ न कहीं सेज की मुरझा जाएँ

[रुखसार=cheek]

अब तुम आगोश -ए -तसव्वुर में भी आया न करो
मैं इस उजड़े हुए पहलू में बिठा लूँ ना कहीं
लब- ए - शीरीं का नमक आरिज़ -ए -नमकीन की मिठास
अपने तरसे हुए होंठों में चुरा लूँ न कहीं

[लब- ए - शीरीं =sweet lips;आरिज़ -ए -नमकीन =salty cheeks] 
बस इक झिझक है यही हाल -ए -दिल सुनाने में 
की तेरा ज़िक्र भी आयेगा इस फ़साने में 

[झिझक=hesitation;ज़िक्र=mention; फ़साने =tale] 

बरस पड़ी थी जो रुख से नकाब उठाने में 
वो चांदनी है अभी तक मेरे गरीब -खाने में 

इसी में इश्क की किस्मत बदल भी सकती थी 
जो वक़्त बीत गया मुझ को आज़माने में 
...
ये कह के टूट पडा शाख -ए -गुल से आखिरी फूल 
अब और देर है कितनी बहार आने में  

आँख को जाम लिखो

आँख को जाम लिखो
ज़ुल्फ़ को बरसात लिखो
जिस से नाराज़ हो
उस शख्स की हर बात लिखो
जिस से मिलकर भी न मिलने की कसक बाकी है
उसी अनजान शहंशाह की मुलाक़ात लिखो
जिस्म मस्जिद की तरह आँखें नमाज़ों जैसी
जब गुनाहों में इबादत थी
वो दिन रात लिखो
इस कहानी का तो अंजाम वही है
...जो था
तुम जो चाहो तो मोहब्बत की शुरुआत लिखो
जब भी देखो उसे अपनी नज़र से देखो
कोई कुछ भी कहे तुम अपने खयालात लिखो
--Nida Fazli

vo tanha kyu hai

कोई ये कैसे बताये की वो तनहा क्यों हैं 
वो जो अपना था वही और किसी का क्यों हैं 
यही दुनिया है तो फिर ऎसी ये दुनिया क्यों हैं 
यही होता हैं तो आखिर यही होता क्यों हैं 

एक ज़रा हाथ बढ़ा , दे तो पकडले दामन 
उसके सिने में समा जाए हमारी धड़कन 
इतनी कुर्बत हैं तो फिर फासला इतना क्यों है 
[कुर्बत=nearness] 

... दिल -ए -बरबाद से निकला नहीं अब तक कोई 
एक लूटे घर पे दिया करता हैं दस्तक कोई 
आस जो टूट गयी फिर से बंधाता क्यों हैं 

तुम मसर्रत का कहो या इसे गम का रिश्ता 
कहते हैं प्यार का रिश्ता हैं जनम का रिश्ता 
हैं जनम का जो ये रिश्ता तो बदलता क्यों हैं 

[मसर्रत=happiness]

Friday, April 2, 2010

हमारा तुम्हारा मिलना शुरू हुआ है

एक सिलसिला शुरू हुआ है
हमारा तुम्हारा मिलना  शुरू हुआ है|
प्रश्नों का जबाब
और जबाब से फिर एक सवाल शुरू हुआ है||
ना देखी  है न ही सुनी है ऐसी कहानी
बातो ही बातो मे नया ख्याल शुरू हुआ है|
गुड्डो गुडियों का खेल खेलते रहे
खेल खेल मे नया खेल  शुरू हुआ है||


हमारा तुम्हारा मिलना  शुरू हुआ है
एक सिलसिला शुरू हुआ है
उडती थी रेत जिन हवाओ के संग
उनका एक नया रिश्ता शुरू हुआ है|
आँखों मे बसते थे ख्वाब जो
उन ख्वाबो का हकीकत से मुलाकात शुरू हुआ है |

एक सिलसिला शुरू हुआ है
हमारा तुम्हारा मिलना  शुरू हुआ है ||

Thursday, October 22, 2009

koi aaya hai

ye itra kisne bikraya hai.....
lagta hai mere gher koi aaya hai
sham se hawao mai kuchh sargoshi si hai
lagta hai badalo ne kadam es taraf badhaya hai
dekho, parinde chhup gye sabhi kahi
chand ne chandni ko, jo bulaya hai
lagta hai mere gher koi aaya hai

आशयाना

चाँद की रौशनी मे ये कौन जगमगाया है ,
देखो मैंने भी अपना एक नया आशयाना बनाया है
दिन छिपने पे पंछी खोज लेते है अपना बसेरा जिस तरह ,
मैंने भी एक कदम उस तरह बढाया है
अपने विचारो को गीतों का रूप दे देता है, कवि जिस तरह ,
मैंने भी हार मे एक नया मोती उस तरह पिरोया है
देखो मैंने भी अपना एक नया आशयाना बनाया है