Showing posts with label Saeed Rahi. Show all posts
Showing posts with label Saeed Rahi. Show all posts

Tuesday, July 3, 2012

KYA JAANE KAB KHA SE CHURAI MERI GAJHAL

क्या जाने कब कहाँ से चुराई मेरी ग़ज़ल
उस शोख ने मुझी को सुनाई मेरी ग़ज़ल

पूछा जो मैंने उस से के है कौन खुश -नसीब
आँखों से मुस्कुरा के लगाई मेरी ग़ज़ल

एक -एक लफ्ज़ बन के उड़ा था धुंआ -धुंआ
उस ने जो गुनगुना के सुनाई मेरी ग़ज़ल

हर एक शख्स मेरी ग़ज़ल गुनगुनाएं हैं
... राही ’ तेरी जुबां पे ना आई मेरी ग़ज़ल