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Tuesday, July 3, 2012

AB TUM AAGOSH A TASSVUR

अब तुम आगोश -ए -तसव्वुर में भी आया न करो
मुझ से बिखरे हुए गेसू नहीं देखे जाते
सुर्ख आँखों की क़सम कांपती पलकों की क़सम
थर -थराते हुए आंसू नहीं देखे जाते

[आगोश -ए -तसव्वुर =in the grasp/reach of dreams/imagination]

अब तुम आगोश -ए -तसव्वुर में भी आया न करो
छूट जाने दो जो दामन -ए -वफ़ा छूट गया
क्यूँ ये लगजीदा ख़रामी ये पशेमान नज़री
तुम ने तोड़ा नहीं रिश्ता -ए -दिल टूट गया

[लगजीदा ख़रामी =hesitant walk; पशेमान नज़री=penitent gaze]

अब तुम आगोश -ए -तसव्वुर में भी आया न करो
मेरी आहों से ये रुखसार न कुमला जाएँ
ढूँदती होगी तुम्हें रस में नहाई हुई रात
जाओ कलियाँ न कहीं सेज की मुरझा जाएँ

[रुखसार=cheek]

अब तुम आगोश -ए -तसव्वुर में भी आया न करो
मैं इस उजड़े हुए पहलू में बिठा लूँ ना कहीं
लब- ए - शीरीं का नमक आरिज़ -ए -नमकीन की मिठास
अपने तरसे हुए होंठों में चुरा लूँ न कहीं

[लब- ए - शीरीं =sweet lips;आरिज़ -ए -नमकीन =salty cheeks] 
बस इक झिझक है यही हाल -ए -दिल सुनाने में 
की तेरा ज़िक्र भी आयेगा इस फ़साने में 

[झिझक=hesitation;ज़िक्र=mention; फ़साने =tale] 

बरस पड़ी थी जो रुख से नकाब उठाने में 
वो चांदनी है अभी तक मेरे गरीब -खाने में 

इसी में इश्क की किस्मत बदल भी सकती थी 
जो वक़्त बीत गया मुझ को आज़माने में 
...
ये कह के टूट पडा शाख -ए -गुल से आखिरी फूल 
अब और देर है कितनी बहार आने में  

vo tanha kyu hai

कोई ये कैसे बताये की वो तनहा क्यों हैं 
वो जो अपना था वही और किसी का क्यों हैं 
यही दुनिया है तो फिर ऎसी ये दुनिया क्यों हैं 
यही होता हैं तो आखिर यही होता क्यों हैं 

एक ज़रा हाथ बढ़ा , दे तो पकडले दामन 
उसके सिने में समा जाए हमारी धड़कन 
इतनी कुर्बत हैं तो फिर फासला इतना क्यों है 
[कुर्बत=nearness] 

... दिल -ए -बरबाद से निकला नहीं अब तक कोई 
एक लूटे घर पे दिया करता हैं दस्तक कोई 
आस जो टूट गयी फिर से बंधाता क्यों हैं 

तुम मसर्रत का कहो या इसे गम का रिश्ता 
कहते हैं प्यार का रिश्ता हैं जनम का रिश्ता 
हैं जनम का जो ये रिश्ता तो बदलता क्यों हैं 

[मसर्रत=happiness]