Tuesday, July 3, 2012

आँख को जाम लिखो

आँख को जाम लिखो
ज़ुल्फ़ को बरसात लिखो
जिस से नाराज़ हो
उस शख्स की हर बात लिखो
जिस से मिलकर भी न मिलने की कसक बाकी है
उसी अनजान शहंशाह की मुलाक़ात लिखो
जिस्म मस्जिद की तरह आँखें नमाज़ों जैसी
जब गुनाहों में इबादत थी
वो दिन रात लिखो
इस कहानी का तो अंजाम वही है
...जो था
तुम जो चाहो तो मोहब्बत की शुरुआत लिखो
जब भी देखो उसे अपनी नज़र से देखो
कोई कुछ भी कहे तुम अपने खयालात लिखो
--Nida Fazli

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