कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है ...
की ज़िंदगी तेरी जुल्फों की नर्म छाओं में
गुज़रने पाती तो शादाब हो भी सकती थी
ये तीरगी जो मेरी जीस्त का मुक़द्दर है
तेरी नज़र की शुआओं में खो भी सकती थी
अजब ना था की मैं बेगाना -ए -आलम हो कर
तेरे जमाल की रानाईयों में खोया रहता
तेरा गुदाज़ बदन तेरी नीम्बार आँखें
... इन्हीं हसीं फसानों में माहो रहता
पुकारतीं मुझे जब तल्खियां ज़माने की
तेरे लबों से हलावत के घूँट पी लेता
हयात चीखती फिरती बरहनासर , और मैं
घनेरी जुल्फों के साए में छुप के जी लेता
मगर ये हो ना सका और अब ये आलम है
की तू नहीं , तेरा गम , तेरी जुस्तजू भी नहीं
गुज़र रही है कुछ इस तरह ज़िंदगी जैसे
इसे किसी के सहारे की आरजू भी नहीं
ज़माने भर के दुखों को लगा चुका हूँ गले
गुज़र रहा हूँ कुछ अनजानी गुज़र्गाहों से
मुहीब साए मेरी सिम्त बढ़ाते आते हैं
हयात -ओ -मौत के पुरहौल खाराजारों से
ना कोई जादा , ना मंजिल,ना रोशनी का सुराग
भटक रही है खालाओं में ज़िंदगी मेरी
इन्हीं ख्यालों में रह जाऊँगा कभी खो कर
मैं जानता हूँ मेरी हमनफस मगर यूं ही
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है ...
की ज़िंदगी तेरी जुल्फों की नर्म छाओं में
गुज़रने पाती तो शादाब हो भी सकती थी
ये तीरगी जो मेरी जीस्त का मुक़द्दर है
तेरी नज़र की शुआओं में खो भी सकती थी
अजब ना था की मैं बेगाना -ए -आलम हो कर
तेरे जमाल की रानाईयों में खोया रहता
तेरा गुदाज़ बदन तेरी नीम्बार आँखें
... इन्हीं हसीं फसानों में माहो रहता
पुकारतीं मुझे जब तल्खियां ज़माने की
तेरे लबों से हलावत के घूँट पी लेता
हयात चीखती फिरती बरहनासर , और मैं
घनेरी जुल्फों के साए में छुप के जी लेता
मगर ये हो ना सका और अब ये आलम है
की तू नहीं , तेरा गम , तेरी जुस्तजू भी नहीं
गुज़र रही है कुछ इस तरह ज़िंदगी जैसे
इसे किसी के सहारे की आरजू भी नहीं
ज़माने भर के दुखों को लगा चुका हूँ गले
गुज़र रहा हूँ कुछ अनजानी गुज़र्गाहों से
मुहीब साए मेरी सिम्त बढ़ाते आते हैं
हयात -ओ -मौत के पुरहौल खाराजारों से
ना कोई जादा , ना मंजिल,ना रोशनी का सुराग
भटक रही है खालाओं में ज़िंदगी मेरी
इन्हीं ख्यालों में रह जाऊँगा कभी खो कर
मैं जानता हूँ मेरी हमनफस मगर यूं ही
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है ...
No comments:
Post a Comment